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प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एक सीमा तक ही होना चाहिए-श्रीमहंत रामरतन गिरी

विक्की सैनी

हरिद्वार, 9 फरवरी। श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी के सचिव श्रीमहंत रामरतन गिरी महाराज ने कहा है कि प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एक सीमा तक ही होना चाहिए। हमें अपनी जीवनशैली को प्रकृति के अनुसार ही जीना चाहिए। प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण ही प्राकृतिक आपदाएं अपना कहर बरसाती हैं। प्रैस को जारी बयान में श्रीमहंत रामरतन गिरी महाराज ने कहा कि उत्तराखंड के चमोली जिले में आई प्राकृतिक आपदा प्राकृतिक संसाधनों से छेड़छाड़ का कारण है। देवभूमि उत्तराखंड का प्राकृतिक स्वरूप पूरे विश्व में एक अलग रूप में जाना जाता है। गंगा की पवित्रता व निर्मलता सभी को अपनी ओर आकर्षित करती है। गंगा के वेग को रोक कर उस पर बांध बनाना अथवा अधिक मात्रा में पावर प्लांट लगाना उचित नहीं है। पूर्व में भी प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर उत्तराखंड में एक बड़ी आपदा आई थी। जिसमें भारी जानमाल का नुकसान हुआ था वर्तमान में आई आपदा में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए उन्होंने सरकार से मांग की है कि मृतक परिवारों को अधिक से अधिक मुआवजा एवं सहायता प्रदान की जाए। सरकार को प्रकृति का संरक्षण भी ध्यान में रखना चाहिए। अन्यथा दिन प्रतिदिन ऐसी आपदाएं घटित हो सकती हैं। जिसमें भारी जानमाल का नुकसान आम जनमानस को झेलना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि औद्योगिक विकास के लिए जंगलों की अंधाधुंध कटाई को रोका जाए। प्रकृति से छेड़छाड़ का परिणाम ही ग्लोबल वार्मिंग है। उन्होंने कहा कि सरकार को प्राकृतिक स्रोतों से छेड़छाड़ बंद कर सभी को पर्यावरण संरक्षण का संदेश प्रदान करना चाहिए। दिगंबर गंगागिरी महाराज ने कहा कि प्रकृति से अंधाधुंध छेड़छाड़ के कारण प्रकृति और मानव के बीच असंतुलन पैदा हो गया है। जिससे जल, जमीन, पौधे आदि खतरे के दौर से गुजर रहे हैं। इसलिए विकास के नाम पर प्रकृति से छेड़छाड़ ना की जाए। तेजी से बढ़ रही जनसंख्या, औद्योगीकरण एवं रासायनिक कृषि ने पर्यावरण को असंतुलित कर दिया है। जिससे कई तरह की वनस्पतियां प्राणी एवं स्रोत नष्ट हो रहे हैं। इसलिए असंतुलन पैदा करने वाले घटकों पर रोक लगनी चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रकृति की बिगड़ती सेहत को देखकर यदि हमने अपनी आदतें नहीं बदली तो एकमात्र जीवनदायिनी पृथ्वी में ही जिंदगी दूभर हो जाएगी। सरकार को समय-समय पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश लोगों को देना चाहिए। जिससे सभी लोग प्रकृति के संरक्षण संवर्धन में अपनी भूमिका निभा सके।

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