राकेश वालिया
ब्रह्मलीन निराला स्वामी लहरी बाबा महाराज की पुण्यतिथि मनाई
हरिद्वार 27 अक्टूबर। निराला धाम की अध्यक्ष राजमाता आशा भारती महाराज ने कहा है कि संतों का जीवन सदैव मानवता की रक्षा के लिए समर्पित रहता है और महापुरूषों ने सदैव समाज को नई दिषा प्रदान की है। भूपतवाला स्थित निराला धाम आश्रम में ब्रह्मलीन निराला स्वामी लहरी बाबा महाराज की पुण्य तिथि पर श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी लहरी बाबा एक दिव्य महापुरूष थे। जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र कल्याण के लिए समर्पित किया। गंगा तट से अनेकों सेवा प्रकल्प चलाकर उन्होंने सदैव गरीब, असहाय लोगों की सहायता की। मानव सेवा में उनका अतुल्य योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्वामी ऋषिष्वरानंद महाराज ने कहा कि परमार्थ को समर्पित रहने वाले संत सदैव ही समाज को ज्ञान की प्रेरणा देकर समाज का मार्गदर्षन करते है और ब्रह्मलीन स्वामी लहरी बाबा तो साक्षात त्याग एवं तपस्या की अद्भुत प्रतिमूर्ति थे जिन्होंने अपने तप व विद्वता के माध्यम से भारत ही नहीं अपितु विदेषों में भी भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म का प्रचार प्रसार किया ऐसे महापुरूषों को संत समाज सदैव नमन करता है। स्वामी हरिहरानंद महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी लहरी बाबा एक महान महापुरूष थे। जिनके जीवन का मुख्य उद्देष्य गौ सेवा व गंगा सेवा का था। उन्होंने सदैव भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर संतों की सेवा के लिए प्रेरित किया। उन्हीं के बताये मार्ग का अनुसरण कर राजमाता ऋषिश्वरानंद भारती महाराज समाज का मार्गदर्षन कर संतों की सेवा में सदैव तत्पर है। ब्रह्मलीन स्वामी लहरी बाबा महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर आश्रम की ओर से गरीब, असहाय लोगांे को भोजन प्रसाद वितरित किया गया। इस दौरान राजमाता ऋषिश्वरानंद भारती महाराज के कृपापात्र षिष्य नित्यानंद ने बताया कि पूज्य गुरूदेव ब्रह्मलीन स्वामी लहरी बाबा की प्रेरणा से ही आश्रम की ओर से लगातार गरीब असहाय लोगों को भोजन व राषन समय-समय पर वितरित किया जाता है। लाॅकडाउन में भी पूज्य गुरूदेव की प्रेरणा से सैकड़ों गरीब लोगों को राषन वितरण किया गया। गुरूदेव का उद्देष्य सदैव मानव सेवा के लिए तत्पर रहना था। उन्हीं के बताये मार्ग पर चलकर उनके द्वारा प्रारंभ किये गये सेवा प्रकल्पों मंे प्रतिदिन बढ़ोत्तरी की जा रही है। इस अवसर पर स्वामी दिनेष दास, स्वामी षिवानंद, महंत सुमितदास, स्वामी केषवानंद, महंत सूरजदास आदि उपस्थित रहे।