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’कचरा प्रबंधन में उत्तराखण्ड सहित देश का बुरा हाल’

Himansu Bhutt
प्राकृतिक सुंदरता से सराबोर पृथ्वी को हम कचरे के ढेर में परिवर्तित करते जा रहे हैं। नदी, झील, तालाब और महासागरों को हमने कूड़ाघर बना दिया है। पहाड़ की वादियों, बुग्यालों और हिमालय में भी हम कूड़े का जहर घोलने से पीछे नहीं हैं। इसी कारण जल और थल प्रदूषित हो रहे हैं। आसमान (हवा) को जहरीली गैसों ने प्रदूषित कर दिया है। ये गैंसे उद्योगों और परिवहन माध्यमों सहित (एसी) जैसे विभिन्न उत्पादों से निकलती है लेकिन इसमें बड़ा योगदान इंसानों द्वारा विभिन्न स्थानों पर डंप किए गए कचरे का भी है। ये कचरा तब और ज्यादा खतरा बन जाता हैए जब खुले में ही इसे जला दिया जाता है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता का विषय कचरे का ठीक से प्रंबधन करने की व्यवस्था न करने वाले नगर निकाय और हमारी सरकार हैं। जिस करण देश में विभिन्न बीमारियां जन्म ले रही हैं।

भारत के नगर निकायों में हर दिन 1 लाख 47 हजार 613 टन कचरा जनरेट होता हैए लेकिन लगभग 50 प्रतिशत कचरा महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक जैसे पांच राज्य अकेले ही जनरेट करते हैं। कचरा प्रबंधन में समस्या न हो इसके लिए समय समय पर जनता और नगर निकायों को विभिन्न माध्यमों से घरों से कूड़ा लेने से पहले ही कचरे का पृथ्कीकरण (गीला और सूखा कूड़ा अलग अलग) करने की सलाह दी जाती है लेकिन देश के समस्त नगर निकायों के 25 प्रतिशत वार्ड कूड़े के स्रोत पर ही कचरे का पृथ्कीकरण नहीं करते हैं। देश में कचरा पृथ्कीकरण की व्यवस्था इतनी खराब है कि देश 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में कचरे को अलग अलग का प्रदर्शन देश के कुल औसत से भी कम है। जनवरी 2020 तब देश के नगर निकायों से उत्पादित होने वाले कुल कचरे के 40 प्रतिशत हिस्से का प्रंबधन नहीं किया जा सका है। यहां भी देश के 17 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रर्दशन राष्ट्रीय औसत से कम है। ये सभी जानकारी सीएसई की आफ इंडियाज इनवायरमेंट रिपोर्ट 2020 में दी गई है।

रिर्पोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा साॅलिड वेस्ट महाराष्ट्र से निकलता है। महाराष्ट्र के नगर निकायों से हर दिन निकलने वाले 22080 टन कचरे का 42 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश के 15500 टन कचरे का भी 42 प्रतिशत अनुपचारित रहता है। हमेशा चर्चाओं रहने वाली राजधानी दिल्ली की हालत भी खराब ही है। दिल्ली के नगर निकायों से रोजाना 10500 टन कचरा निकलता हैए लेकिन लगभग 45 प्रतिशत कचरा अनुपचारित ही रह जाता है। इसी प्रकार आंध्र प्रदेश का 37 प्रतिशत, असम का 47 प्रतिशत, अंडमान और निकोबार का 5 प्रतिशत, बिहार का 49 प्रतिशत, चंड़ीगढ़ का पांच प्रतिशत, छत्तीसगढ़ का 10 प्रतिशत, दमन और दीव का 25 प्रतिशत, गोवा का 30 प्रतिशत, हरियाणा का 52 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश का 22 प्रतिशत, जम्मू और कश्मीर का 84 प्रतिशत, झारखंड का 40 प्रतिशत, कर्नाटक का 46 प्रतिशत, सिक्किम का 30 प्रतिशत, मणिपुर का 42 प्रतिशत, मध्य प्रदेश का 13 प्रतिशत, केरल का 29 प्रतिशत, मेघालय का 96 प्रतिशत, मिजोरम का 65 प्रतिशत, नागालैंड़ का 40 प्रतिशत, राजस्थान का 28 प्रतिशत, पंजाब का 39 प्रतिशत, पुड्डुचेरी का 89 प्रतिशत, ओडिशा का 52 प्रतिशत, तमिलनाडु का 32 प्रतिशत, तेलंगाना का 22 प्रतिशत, त्रिपुरा का 47 प्रतिशत और उत्तराखंड का 54 प्रतिशत कूड़ा अनुपचारित रह जाता हैए लेकिन सबसे खराब स्थिति तो अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल की है। यहां क्रमशः 100 प्रतिशत और 91 प्रतिशत कूड़ा अनुपचारित रहता है। हालांकि दादरा और नगर हवेल में रोजाना 55 टन कचरा जनरेट होता है और पूरे कचरे का उपचार कर लिया जाता है।

राज्यों के नगर निकायों द्वारा प्रतिदिन कचरा उत्पादन (स्रोत= सीएसई)

राज्य कचरा (टन में)

दिल्ली 10500
गोवा 250
गुजरात 10274
हरियाणा 4783
हिमाचल प्रदेश 377
जम्मू कश्मीर 1489
झारखंड 2135
कर्नाटक 10000
सिक्किम 89
मणिपुर 174
महाराष्ट्र 22080
मध्य प्रदेश 6424
मेघालय 268
मिजोरम 236
नागालैंड 461
राजस्थान 6500
पंजाब 4100
पुड्डुचेरी 415
ओडिशा 2721
तमिलनाडु 15437
तेलंगाना 8634
त्रिपुरा 450
उत्तर प्रदेश 15500
उत्तराखंड 1589
पश्चिम बंगाल 7700
आंध्र प्रदेश 6141
अंडमान निकोबार 90
अरुणाचल प्रदेश 181
बिहार 2272
असम 1432
चंड़ीगढ़ 479
केरल 2696
दादरा और नगर हवेली 55
दमन और दीव 32
छत्तीसगढ़ 1650
कूड़े का पृथ्कीकरण किए बिना प्रबंधन कैसे होगा संभव

कचरे का उचित प्रकार से प्रबंधन करने के लिए गीले और सूखे कचरे को अलग अलग करना बेहद जरूरी हैए लेकिन राजधानी दिल्ली में केवल 20 प्रतिशत कचरा ही कचरे के स्रोत पर अलग अलग किया जाता है, 80 प्रतिशत कचरा मिक्स रहता है। तो वहीं गोवा में 20 प्रतिशत, गुजरात में 17 प्रतिशत, हरियाणा में 37 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 1 प्रतिशत, जम्मू कश्मीर में 87 प्रतिशत, झारखंड में 19 प्रतिशत, कर्नाटक में 43 प्रतिशत, सिक्किम में 6 प्रतिशत, मणिपुर में 36 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 13 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 2 प्रतिशत, मेघालय में 76 प्रतिशत, मिजोरम में 13 प्रतिशत, नागालैंड में 87 प्रतिशत, राजस्थान में 18 प्रतिशत, पंजाब में 15 प्रतिशत, पुड्डुचेरी में 5 प्रतिशत, ओडिशा में 31 प्रतिशत, तमिलनाडु में 15 प्रतिशत, तेलंगाना में 52 प्रतिशत, त्रिपुरा में 22 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 31 प्रतिशत, उत्तराखंड में 43 प्रतिशत, पश्चिम बंगाल में 81 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 3 प्रतिशत, अंडमान निकोबार में 4 प्रतिशत, अरुणाचल प्रदेश में 85 प्रतिशत, बिहार में 67 प्रतिशत, असम में 61 प्रतिशत और चंड़ीगढ़ में 8 प्रतिशत कचरा स्रोत पर अलग अलग नहीं किया जाता है। हालांकि केरल, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव, छत्तीसगढ़ से निकलने वाला सभी कचरा स्रोत पर ही अलग अलग कर दिया जाता है। ऐसे में जब इतनी बड़ी संख्या में कचरे का पृथ्कीकरण नहीं किया जाता, तो कूड़े का ठीक से कैसे किया जाएगा ये चिंता का विषय है। सरकार को इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि यही कचरा जल, थल और आकाश को प्रदूषित कर विभिन्न बीमारियों को जन्म दे रहा है।

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