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त्याग और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति थे ब्रह्मलीन स्वामी श्यामसुंदरदास शास्त्री-मदन कौशिक

विक्की सैनी

हरिद्वार, 20 जुलाई। शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने कहा है कि महापुरूषों ने समाज को सदैव नई दिशा प्रदान की है और संतों के सानिध्य में ही व्यक्ति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। श्री गरीबदासीय धर्मशाला सेवाश्रम में ब्रह्मलीन स्वामी डा.श्यामसुंदर दास महाराज की प्रथम पुण्यतिथी पर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने पहुंचे कैबिनेट मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि महापुरूष केवल शरीर त्यागते हैं। समाज कल्याण के लिए उनकी आत्मा व्यवहारिक रूप से सदैव उपस्थित रहती है। ब्रह्मलीन स्वामी श्यामसुंदरदास शास्त्री महाराज त्याग और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने अपने सरल स्वभाव और कुशल नेतृत्व के माध्यम से समाज को एकता के सूत्र में बांधा। ऐसे महापुरूषों को समस्त समाज नमन करता है। स्वामी रविदेव शास्त्री व स्वामी हरिहरानंद महाराज ने कहा कि संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित रहता है। ब्रह्मलीन डा.श्यामसुंदरदास शास्त्री महाराज ने अपने जीवन काल में सदैव गरीब असहायों की मदद की और गंगा तट से अनेकों सेवा प्रकल्प प्रारम्भ कर समाज कल्याण में अपना अतुलनीय योगदान प्रदान किया। युवा संतों को उनसे प्रेरणा लेकर सदैव राष्ट्र एवं समाज हित के लिए समर्पित रहना चाहिए। संत जगजीत सिंह व महंत सुतीक्ष्ण मुनि महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन डा.श्यामसुंदर दास महाराज संत समाज के प्रेरणा स्रोत थे। जिन्होंनें अपना संपूर्ण जीवन सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित किया और धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम समस्त संत समाज को राष्ट्र की एकता अखण्डता बनाए रखने का संदेश दिया। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जिनकी कमी को कभी पूरा नहीं किया जा सकता। महंत शिवानंद महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन डा.श्यामसुंदरदास शास्त्री महाराज एक दिव्य महापुरूष थे। जिन्होंने अपनी सरल वाणी के माध्यम से सभी को एकजुट कर ज्ञान की प्रेरणा दी और समाज को सदैव उन्नति की ओर अग्रसर किया। उनके बताए मार्ग पर समाज हित में अपना योगदान प्रदान करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस दौरान महंत दिनेश दास, स्वामी अरूणदास, महंत श्यामप्रकाश, स्वामी वेदानंद, स्वामी दिव्यानंद, महंत निर्मलदास, महंत सूरजदास, महंत सुमितदास, स्वरानंद, स्वामी कृष्णदास, डा.पदम प्रकाश सुवेदी, समाजसेवी संजय वर्मा, लोकनाथ सुवेदी, शंकर पांडे आदि संत उपस्थित रहे।

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