बाघम्बरी पीठाधीश्वर महंत बलवीर गिरी महाराज ने कहा है कि भगवान शिव में भारतीय संस्कृति का दर्शन समाहित है। शिव कोई व्यक्ति नहीं हैं। चेतना की जो अवस्थाएं (जागृत, निंद्रा व स्वप्न) होती है, उससे से ऊपर चेतना की अवस्था समाधि है। जब हम हर व्यक्ति व जीव के अंदर ईश्वर देखने लगते हैं तो समाधि की उस परम अवस्था को शिवत्व कहते हैं। शिवलिंग की पूजा आकार से निराकार पहुंचने का माध्यम है। श्रावण मास में विशेष शिव आराधना के दौरान श्रद्धालु भक्तों को शिव महिमा का सार समझाते हुए महंत बलवीर गिरी महाराज ने कहा कि शिव पूजन नहीं, दर्शन का विषय हैं। इसी कारण वो सबसे अलग रहते हैं। उन्हें वैद्यनाथ यानी चिकित्सा के गुरु, नटराज यानी नृत्य के गुरु, आदियोगी यानी योग के गुरु कहा जाता है। प्रभु श्रीराम के भी गुरु हैं शिव। रामेश्वरम् में स्वयं श्रीराम ने शिवलिंग स्थापित करके पूजन किया था। शिव ओंकार भी हैं और संहारक भी। जिन भूत, पे्रत व पिशाचों को कोई अपने साथ नहीं रखना चाहता, जिन्हें सब उपेक्षा की नजर से देखते हैं। उन्हें शिव अपना गण बनाकर ससम्मान अपने साथ रखते हैं। वे अद्र्धनारीश्वर भी हैं। भारतीय संस्कृति हमें नारी सम्मान, किसी को उपेक्षित न करने की सीख देती है। भगवान शिव के जरिए उसका साक्षात दर्शन होता है। भोलेनाथ हैं शिव। साथ ही समुद्र मंथन से निकले विष को धारण करते हैं, लेकिन विपरीत परिस्थिति में तांडव भी करते हैं। हर व्यक्ति को स्वयं के अंदर शिवत्व धारण करना चाहिए।