विक्की सैनी
हरिद्वार 22 अक्टूबर। संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित होता है और शिव स्वरूप संत ही अपने भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उक्त उद्गार भूपतवाला स्थित स्वतः मुनि उदासीन आश्रम के परमाध्यक्ष म0म0 स्वामी सुरेश मुनि महाराज ने ब्रह्मलीन स्वामी स्वतः मुनि महाराज की 35वीं पुण्यतिथि पर आयोजित श्रद्धांजलि समारोह में श्रद्धालु भक्तों को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि महापुरूष केवल शरीर त्यागते हैं समाज कल्याण के लिए उनकी आत्मा व्यवहारिक रूप से सदैव उपस्थित रहती है और पूज्य गुरूदेव ब्रह्मलीन स्वामी स्वतः मुनि महाराज तो साक्षात त्याग की प्रतिमूर्ति थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की रक्षा हेतु समर्पित किया। कार्यक्रम को अध्यक्षीय पद से सम्बोधित करते हुए म0म0 स्वामी भगवत स्वरूप महाराज ने कहा कि निर्मल जल के समान जीवन व्यतीत करने वाले संत सदैव समाज का मार्गदर्शन कर भक्तों के जीवन को प्रकाशमय बनाते हैं। ब्रह्मलीन स्वामी स्वतः मुनि महाराज एक दिव्य महापुरूष थे जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के प्रचार प्रसार हेतु समर्पित किया। राष्ट्र कल्याण में उनके अहम योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। स्वामी हरिहरानंद महाराज ने कहा कि संतों के दर्शन मात्र से पापों से निवृत्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है और जिस जगह पर संत सम्मेलन का आयोजन हो जाता है वह सदैव के लिए पूजनीय हो जाता है। उन्होंने कहा कि महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा लेकर सभी को राष्ट्र के उत्थान में अपना जीवन समर्पित करना चाहिये। ब्रह्मलीन स्वामी स्वतः मुनि महाराज ने हमेशा ही भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर समाज सेवा के लिए प्रेरित किया ऐसे महापुरूषों को संत समाज नमन करता है। इस अवसर पर स्वामी सुरेशानंद, महंत जगदीशानंद, महंत चिद्विलासानंद, महंत मोहन सिंह, महंत तीरथ सिंह, स्वामी दिनेश दास, संत जगजीत सिंह, संत मनजीत सिंह, महंत दुर्गादास, महंत सुमित दास, महंत जमनादास, महंत प्रेमदास, स्वामी ऋषिश्वरानंद, म0म0 स्वामी राजेन्द्रानंद, स्वामी ललितानंद गिरि, महंत जगजीतदास, महंत सूरजदास, स्वामी केशवानंद आदि संत मौजूद रहे।