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साधु बेला आश्रम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा का हुआ विश्राम

श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता जगत के लिए प्रेरणादायी- आचार्य स्वामी गौरीशंकर दास

हरिद्वार। साधुबेला आश्रम में श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम अवसर पर सुदामा चरित्र का वर्णन किया गया। श्रीकृष्ण सुदामा मिलन का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर हो गए।

कथा का रसपान कराते हुए श्री बनखंडी साधुबेला पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी गौरीशंकर दास महाराज ने कहा कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त हुए हैं। वह जीवन में जितने दरिद्र नजर आए उतना ही अधिक मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख-दुख को भगवान की इच्छा पर सौंपा दिया था। सुदामा जब श्रीकृष्ण से मिलने गए तो भगवान ने उनकी दरिद्रता को नहीं देखा बल्कि भावनाओं को मोल दिया। वास्तव में मित्रता श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होनी चाहिए। सत्ता पाकर व्यक्ति को घमंड नहीं करना चाहिए। मनुष्य का कर्म ही उसे महान बनाता है।

कथा व्यास योगाचार्य राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि दुख के क्षण और विपत्ति में मदद के लिए आगे आए वही सच्चा मित्र है। श्रीमद् भागवत कथा व्यक्ति को जीवन जीने की कला सिखाती है।
उन्होंने कहा कि भक्त और भगवान की यह कथा अनंत है। जो कभी समाप्त नहीं होती। निरंतर इसकी स्तुति विभिन्न विभिन्न मुखारविंद से चलती रहती है। कहा की दिव्य ज्ञान से मानव अपने जीवन का कल्याण कर सकता है। ज्ञान के बिना इंसान अपने जीवन के सर्वोच्च स्थान को प्राप्त नहीं कर सकता। इसके लिए जरूरी है वह धर्म का अनुसरण करें। इसलिए सभी को भागवत महापुराण का श्रवण अवश्य करना चाहिए।

स्वामी बलराम मुनि महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत ज्ञान की अविरल धारा है। जिसे जितना ग्रहण करो उतनी ही जिज्ञासा बढ़ती है और प्रत्येक सत्संग से अतिरिक्त ज्ञान की प्राप्ति होती है। गरीब सुदामा जब द्वारिका पहुंचे तो भगवान श्रीकृष्ण ने ऊंच, नीच और गरीब, अमीर का भेदभाव मिटाकर उन्हें गले लगाया और उनकी दरिद्रता को दूर किया। भगवान भक्तों की सूचना आराधना से ही प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। इसीलिए सभी को ईश्वर के शरणागत रहकर अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए।
इस अवसर पर गोपाल दत्त पुनेठा, विष्णु दत्त पुनेठा, सुनील सिंह,जगदीश नवानी, सुदामा भवनानी,अमरलाल,कुकरेजा,लालचंद
जगदीश भटीजा,सोनू शर्मा आदि उपस्थित रहे।

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