हरिद्वार, 8 अगस्त। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा है कि त्रिदेवों में देवों के देव महादेव व्यक्ति की चेतना के अंतर्यामी हंै। जो सृष्टि की उत्पत्ति स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं। शिव अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत हैं और महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार हैं। श्रावण मास के आखिरी सोमवार को कनखल स्थित श्री दक्षेश्वर महादेव मंदिर में श्रद्धालु भक्तों को शिव महिमा का वर्णन करते हुए श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि शिव का अर्थ परम कल्याणकारी है। लेकिन वह हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। भगवान से सभी को समान सृष्टि को देखते हैं। इसलिए उन्हें महादेव कहा जाता है। अपनी शरण में आने वाले का भगवान शिव उद्धार करते हैं और उसे यश वैभव प्रदान करते हैं। शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, नृत्य, प्रलय और वैराग्य के देवता सृष्टि के संहारकर्ता और जगतपिता भगवान शिव के भीतर संपूर्ण ब्रह्मांड समाया हुआ है। जब कुछ नहीं था तब भी सिर्फ शिव थे और जब कुछ ना होगा तब भी शिव होंगे। शिव समस्त सृष्टि का भरण पोषण करते हैं और उनके स्वरूप में संपूर्ण सृष्टि का आधार टीका है। श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि ब्रह्मा विष्णु और कैलाशपति शिव मे कोई भेद नहीं है। परंतु सृष्टि के कार्य के लिए सब अलग-अलग रूप लेते हैं। सतयुग से कलयुग तक एक ही मानव शरीर रहता है। जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है। जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है। इसलिए जो व्यक्ति कैलाश वासी भगवान शिव का स्मरण कर लेता है। उसके जन्म जन्मांतर के पुण्य का उदय हो जाता है और अंत में वह परमात्मा को प्राप्त करता है। इस दौरान महंत सूर्य मोहनगिरी, महंत कृष्णापुरी भी मौजूद रहे।
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