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गुरू शिष्य पंरपरा भारत की गौरवशाली परंपरा है-स्वामी ऋषिश्वरानंद

हरिद्वार, 23 जुलाई। गुरू पूर्णिमा के अवसर पर भूपतवाला स्थित श्री आनंद आश्रम में गुरूजन स्मृति पर्व मनाया गया। इस दौरान स्वामी ऋषिश्वरानंद महाराज ने श्रद्धालु संगत को संबोधित करते हुए कहा कि गुरू शिष्य पंरपरा भारत की गौरवशाली परंपरा है। भारत की प्राचीन शिक्षा आध्यात्मिकता पर आधारित थी। प्राचीन शिक्षा पद्धति मुक्ति एवं आत्मबोध के साधन के रूप में थी। जिसमें गुरू का स्थान सर्वोच्च था। शिक्षा व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि धर्म के लिए थी। भारत की शैक्षिक एवं सांस्कृतिक परंपरा विश्व इतिहास में सबसे प्राचीनतम है। उन्होंने कहा कि गुरू के प्रति श्रद्धा व विश्वास से ही शिष्य जीवन में उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है। युवा भारत साधु समाज के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी रविदेव शास्त्री महाराज ने कहा कि गुरू ही शिष्य को सामाजिक ज्ञान का बोध कराता है। व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो। उसे गुरू की आवश्यकता पड़ती ही है। गुरू ना केवल शिष्य को अंधकार से प्रकार की और ले जाता है। बल्कि उसके संरक्षक के रूप में कार्य करता है। जो शिष्य गुरू का आदर करते हुए उनके बताए मार्ग पर चलते हैं। उनका भविष्य सदैव उज्जवल रहता है। आनंद आश्रम के परमाध्यक्ष महंत विवेकानंद महाराज ने कहा कि गुरू ही परमात्मा का दूसरा स्वरूप हैं। जो भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। गुरू की शरण में आए प्रत्येक शिष्य उद्धार निश्चित रूप से होता है। गुरू के प्रति निष्ठा और श्रद्धा शिष्य को महान बनाती है। सभी को अपने गुरूजनों का आदर करते हुए उनके अधूरे कार्यो को पूर्ण करना चाहिए। इस दौरान महंत शिवानंद, स्वामी ऋषि रामकृष्ण, मनोज महंत, महंत दुर्गादास, महंत प्रह्लाद दास, महंत सुतीक्ष्ण मुनि, महंत प्रेमदास, स्वामी रविदेव शास्त्री, महंत सूरजदास, स्वामी केशवानंद, महंत गुरमीत सिंह, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, महामण्डलेश्वर स्वामी अनंतानंद महाराज, महंत मोहन सिंह, महंत तीरथ सिंह, महंत दामोदर दास, महंत सुमित दास, स्वामी केशवानंद, संत जगजीत सिंह, संत मंजीत सिंह, सहित बड़ी संख्या में संत महंत उपस्थित रहे।

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