हरिद्वार, 25 जुलाई। श्रीमहंत परमानंद सरस्वती सेवा आश्रम के अध्यक्ष श्रीमहंत हिमानंद सरस्वती महाराज ने कहा है कि गुरु ही परमात्मा का दूसरा स्वरूप है। जो व्यक्ति की आत्मा का परमात्मा से साक्षात्कार करवा कर उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। गुरु की शरण में आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु भक्तों का कल्याण अवश्य ही निश्चित है। भूपतवाला स्थित आश्रम में श्रद्धालु भक्तों को गुरु शिष्य परंपरा का महत्व समझाते हुए श्रीमहंत हिमानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि गुरु वह महापुरुष हैं, जो आध्यात्मिक ज्ञान एवं शिक्षा द्वारा अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करते हैं और अपने शिष्य को महान बनाते हैं। गुरु के प्रति समर्पण एवं कृतज्ञता प्रत्येक शिष्य का कर्तव्य होता है। गुरु के बताए मार्ग पर चलकर उनके कार्य को पूर्ण करना ही एक सच्चे शिष्य का गुरु के प्रति प्रेम को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में भी गुरु को भगवान से बड़ा दर्जा दिया गया है। क्योंकि गुरु ही होते हैं जो हमें भगवान तक पहुंचने का मार्ग बताते हैं। इसलिए हमेशा गुरुजनों का सम्मान करना चाहिए। ब्रह्मलीन श्रीमहंत परमानंद सरस्वती महाराज एक दिव्य महापुरुष थे। जिन्होंने भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म की रक्षा के लिए जीवन समर्पित किया और सदैव समाज का मार्गदर्शन कर मानव सेवा का संदेश दिया। ऐसे महापुरुषों को संत समाज नमन करता है। महंत हिमानीनंद सरस्वती महाराज ने कहा कि कोई भी शख्स जिसने हमेशा हमें सन्मार्ग की ओर अग्रसर करने में हमारी मदद की है। वह सभी हमारे लिए आदरणीय है और गुरु समान है। सद्गुरु की कृपा से ईश्वर से भी साक्षात्कार संभव है। गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं है। गुरु ही ज्ञान का भंडार है जो अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। गुरु बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। गुरु हमारे जीवन का संरक्षण कर हमें समृद्ध बनाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को अपने गुरुजनों का आदर सम्मान करते हुए उनके बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। गुरु की कृपा का पात्र बनने वाले शिष्य का जीवन हमेशा ही उन्नति की ओर अग्रसर रहता है।
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