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संत समाज ने दी ब्रह्मलीन स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज को श्रद्धांजलि शिष्यों में विवाद के चलते नहीं हो पाया पट्टाभिषेक

राकेश वालिया

समाज के प्रेरणास्रोत थे ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती-स्वामी कैलाानन्द ब्रह्मचारी

हरिद्वार, 27 नवंबर। उत्तरी हरिद्वार स्थित योगानन्द योग आश्रम के परमाध्यक्ष ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज को संत समाज ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि देते हुए उनके दिखाए मार्ग पर चलने का आह्वान किया। श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए श्री दक्षिण काली पीठाधीश्वर म.म.स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज एक दिव्य महापुरूष तथा संत समाज के प्रेरणास्रोत थे। भारतीय संस्कृति, सनातन धर्म व योग का देश विदेश में प्रचार प्रसार करने में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा। उन्होंने कहा कि मानव कल्याण में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनके द्वारा आश्रम में शुरू किए गए सेवाप्रकल्पों को यथावत् संचालित किया जाना चाहिए। जयराम पीठाधीश्वर स्वामी ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन योगीराज योगानन्द महाराज मानव सेवा की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। कोरोना के चलते किए लाॅकडाउन में उत्तरी हरिद्वार क्षेत्र में जरूतमदों की सेवा में उनका सबसे अहम योगदान रहा। मानव कल्याण के लिए उनके द्वारा शुरू किए गए सेवा प्रकल्प सभी को प्रेरणा देते रहेंगे। उन्होंने कहा कि आश्रम अखाड़ों में किए जाने वाले धार्मिक क्रियाकलाप हमेशा ही श्रद्धालु भक्तों में धार्मिक ऊर्जा का संचार करते हैं। महंत रूपेंद्र प्रकाश व म.म.स्वामी हरिचेतनानन्द महाराज ने कहा कि संतों के सानिध्य में ही भक्तों का कल्याण होता है। ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज भले ही शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है। लेकिन उनकी आत्मा भक्तों के कल्याण व मार्गदर्शन के लिए सूक्ष्म रूप से सदैव उपस्थित रहेगी। सभी को उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करते हुए राष्ट्रसेवा में योगदान करना चाहिए। पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी महाराज व म.म.स्वामी प्रबोधानन्द गिरी महाराज ने कहा कि त्याग व तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज के विचार व शिक्षाएं सदैव समाज का मार्गदर्शन करती रहेंगी। उनकी शिक्षाओं को जीवनचर्या में शामिल कर समाज सेवा में योगदान करने का संकल्प ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज के शिष्य स्वामी सत्यव्रतानन्द महाराज ने कहा कि गुरूदेव की शिक्षाओं के अनुरूप आश्रम से संचालित सेवाप्रकल्पों को आगे बढ़ाया जाएगा। आश्रम से दी जा रही योग शिक्षा को भी अनवर्त रूप से जारी रखा जाएगा। गुरूदेव को गंगा से बेहद लगाव था। गंगा को स्वच्छ, निर्मल, अविरल बनाने में योगदान किया जाएगा। साध्वी हरिप्रिया ने कहा कि ब्रह्मलीन गुरूदेव स्वामी योगानन्द सरस्वती उनके पूज्नीय थे। संत समाज के आशीर्वाद व सहयोग से उनके अधूरे कार्यो को पूर्ण किया जाएगा। म.म.स्वामी प्रेमानन्द गिरी, महामनीषी निरंजन स्वामी, स्वामी कल्याणानन्द, म.म.स्वामी अनन्तानंद, स्वामी पूर्णानन्द गिरी, महंत श्याम प्रकाश, महंत विनोद महाराज, महंत कमलदास, महंत प्रेमदास, साध्वी त्रिकाल भवंता, बाबा हठयोगी, धर्मगुरू आचार्य संजीव भारद्वाज, स्वामी विवेकानन्द ब्रह्मचारी, श्रीमहंत साधनानंद, साध्वी मंदाकिनी, साध्वी योगी श्रद्धानाथ, स्वामी रामप्रकाश, स्वामी योगेश्वरानन्द, स्वामी राघवानन्द, स्वामी ब्रह्मदास शास्त्री, स्वामी माधवानन्द, महंत देवानन्द सरस्वती, स्वामी ललितानन्द गिरी आदि संत महापुरूषों व पार्षद प्रतिनिधि विदित शर्मा, पंडित मोहित नवानी, रितेश वशिष्ठ, भाजयुमो नेता हरजीत सिंह आदि सहित अनेक गणमान्य लोगों ने ब्रह्मलीन स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित किए।

संत समाज ने दोनों शिष्यों को दिया दो माह का समय

हरिद्वार, 27 नवंबर। उत्तरी हरिद्वार स्थित योगानन्द योग आश्रम के परमाध्यक्ष योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती के ब्रह्मलीन होने के बाद उनकी श्रद्धांजलि सभा के दौरान आश्रम के स्वामित्व को लेकर ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानन्द सरस्वती महाराज के शिष्य स्वामी सत्यव्रतानन्द व शिष्या साध्वी हरिप्रिया के आमने सामने आ जाने से आश्रम के परमाध्यक्ष पद पर स्वामी सत्यव्रतानन्द का पट्टाभिषेक नहीं हो सका। श्रद्धांजलि सभा में मौजूद संत समाज की मौजूदगी में ही दोनों पक्षा में तीखी नोंकझोंक हुई। मामला बढ़ने पर पुलिस की मौजूदगी में संत समाज ने दोनो पक्षों को दो माह का समय देते हुए आपसी सहमति से मामले का हल निकालने को कहा गया। स्वामी सत्यव्रतानन्द व साध्वी हरिप्रिया ने विवाद का पूर्ण हल निकलने तक संत समाज की सहमति से पट्टाभिषेक के लिए लायी गयी चादर को गुरू की समाधि पर रख दिया। म.म.स्वामी कैलाशानंद ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि स्वामी योगानन्द के दोनों शिष्य आपसी समन्वय कर आश्रम का संत परंपरांओं के अनुरूप आश्रम का संचालन करें। ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि पद के लिए संत समाज में इस तरह के विवादों से समाज में गलत संदेश जाता है। इसलिए आपसी सहमति से विवाद का निपटारा किया जाए। उन्होंने संत समाज का आह्वान करते हुए कहा कि सभी वरिष्ठ संतों को अपने जीवनकाल में ही अपनी विरासत का निपटारा कर देना चाहिए। जिससे आगे चलकर कोई विवाद उत्पन्न ना हो। म.म.स्वामी हरिचेतनानन्द महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी योगानन्द सरस्वती के दोनों परम शिष्यों का संत परंपरा का पालन करते हुए संत समाज की गरिका को बनाए रखने में सहयोग करना चाहिए। पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी ने कहा कि इस तरह के विवाद संत पंरपरा के लिए न्यायसंगत नहीं है। आश्रम अखाड़ों के विवाद संत महापुरूषों के समन्वय से ही हल होने चाहिए। म.म.स्वामी प्रबोधानन्द गिरी महाराज ने कहा कि गुरू शिष्य परंपरा का आदि अनादि काल से संत महापुरूषों द्वारा निर्वहन किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आश्रम अखाड़ों के स्वामित्व को लेकर विवाद करना उचित नहीं है। आपसी तालमेल बैठाकर ही समस्या का समाधान किया जाना चाहिए।

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