हरिद्वार, 19 अप्रैल। भूपतवाला स्थित साधु बेला आश्रम में विश्व शांति के लिए होमात्मक शतचंडी महायज्ञ एवं महा पासु पतास्त महायज्ञ का आयोजन किया गया। श्री बनखण्डी साधु बेला पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी गौरी शंकर दास महाराज ने कहा है कि आज पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। ऐसे में हरिद्वार महाकुंभ के माध्यम से संपूर्ण विश्व को धर्म का एक सकारात्मक संदेश प्रसारित हो रहा है। उन्होंने कहा कि मानव जाति की समस्या का हल सामूहिक शक्ति एवं संघबद्धता पर निर्भर है। एकाकी, व्यक्तिवादी एवं असंगठित लोग दुर्बल और स्वार्थी माने जाते हैं। यज्ञ का वास्तविक लाभ सार्वजनिक रूप से जन सहयोग से संपन्न कराने पर ही उपलब्ध होता है। उन्होंने कहा कि यज्ञ काल में उच्चारित वेद मंत्रों की पुनीत ध्वनि आकाश में व्याप्त होकर लोगों के अंतः करण को सात्विक एवं शुद्ध बनाती है। व्यक्ति की उन्नति और सामाजिक प्रगति का सारा आधार सहकारिता, त्याग एवं परोपकार आदि प्रवृत्तियों पर निर्भर रहता है। यदि मनुष्य ने यज्ञ भावना के साथ स्वयं को जोड़ा ना होता तो अपनी शारीरिक असमर्थता के कारण वह अपना अस्तित्व खो बैठता। मनुष्य का व्यक्तित्व जितना भी बड़ा है। उसमें यज्ञ की भावना ही एकमात्र माध्यम है। यदि व्यक्ति को प्रगति करनी है तो उसका आधार यही बात होगी। आचार्य स्वामी गौरी शंकर दास महाराज ने कहा कि वेद मंत्रोच्चारण से एक विशेष प्रकार की ध्वनि तरंगे उत्पन्न होती हैं। जिसका प्रभाव विश्वव्यापी प्रकृति सुख में जगत तथा प्राणियों के स्थूल और सूक्ष्म शरीरों पर पड़ता है। जिससे व्यक्ति का मन धर्म के मार्ग पर अग्रसर होता है। उन्होंने कहा कि दवाओं में सीमित स्थान एवं सीमित व्यक्ति को ही बचाने की शक्ति है। परंतु यज्ञ की वायु सर्वत्र है जो जहां-जहां पहुंचती है वहीं पर प्राणियों की सुरक्षा करती है। मनुष्य ही नहीं कीटाणु एवं वृक्ष वनस्पतियों के आरोग्य की भी यज्ञ से ही रक्षा होती है। उन्होंने कहा कि जिन घरों एवं स्थानों में यज्ञ का आयोजन होता है। वह भी एक प्रकार का तीर्थ बन जाता है। वहां जिनका आगमन रहता है, उनकी मनो भूमि उच्च सुविकसित एवं सुसंस्कृत बन जाती है। उन्होंने कहा कि यज्ञ प्रभाव से सुसंस्कृत हुई विवेकपूर्ण मनोभूमि का प्रतिफल जीवन के प्रत्येक क्षण को स्वर्ग जैसे आनंद से भर देता है। इसलिए यज्ञ को स्वर्ग देने वाला भी कहा गया है। उन्होंने कहा कि पाप नाशक यज्ञ के आयोजन से आत्मा को परमात्मा से मिलाने का परम लक्ष्य भी सरल हो जाता है। इसलिए वातावरण में यज्ञ प्रभाव की शक्ति भरना आवश्यक है।
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