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जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज की जयंती पर संत समाज ने की विश्व कल्याण की कामना

परम तपस्वी युगांतकारी संत थे जगद्गुरू रामानंदाचार्य महाराज-श्रीमहंत रविन्द्रपुरी

हरिद्वार, 24 जनवरी। जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज की जयंती के अवसर पर मध्य हरिद्वार स्थित श्री रामानंद आश्रम आचार्य महापीठ में संत समाज ने उनके चित्र पर पुष्प अर्पित कर आरती की और कोरोना महामारी की समाप्ति हेतु पूजा अर्चना कर विश्व कल्याण की कामना की। इस अवसर पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष एवं श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव श्रीमहंत रविंद्रपुरी महाराज ने कहा कि भक्ति आंदोलन के प्रणेता एवं श्री रामानंद संप्रदाय के प्रवर्तक जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य परम तपस्वी युगांतकारी दार्शनिक एवं समन्वयवादी संत थे। जिनमें बाल्य अवस्था से ही अत्यंत विलक्षण प्रतिभा समाहित थी। जिन्होंने समाज से जात पात ऊंच नीच का भेदभाव समाप्त कर समरसता का संदेश दिया। संत कबीर जैसे महापुरुषों ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज से दीक्षा प्राप्त करने के पश्चात पाखंड और अंधविश्वास का आजीवन पुरजोर विरोध किया। राष्ट्र निर्माण में ऐसे महापुरुषों का योगदान सदैव अविस्मरणीय रहेगा। उन्होंने कहा कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज ने भारतीय वैष्णव भक्ति धारा को पुनर्गठित किया और विभिन्न मत मतांतरो एवं पंथ संप्रदायों मे फैली वैमनस्यता को दूर करने के लिए समस्त हिंदू समाज को एक सूत्र मे पिरोया। साथ ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम को अपना आदर्श मानकर सरल राम भक्ति के मार्ग को प्रशस्त किया। जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य ने आजीवन भक्ति और सेवा का संदेश समाज को दिया। यदि प्रत्येक व्यक्ति उनके जीवन दर्शन को आत्मसात कर ले तो देश व समाज से प्रत्येक बुराई का खात्मा होगा और भारत देश एक बार फिर सोने की चिड़िया कहलाएगा। महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि एवं महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद महाराज ने कहा कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज वैष्णव भक्ति धारा के महान संत थे। जिन्होंने वैष्णो साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। संत कबीर और रविदास जैसे संत जिनके शिष्य हो, उनकी महानता को दर्शाया नहीं जा सकता। उन्होंने राम भक्ति की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया और वह पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार प्रसार किया और वैष्णव संप्रदाय की स्थापना की। जगदगुरु रामानंद ऐसे महान संत थे। जिनकी छाया तले सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत उपासक विश्राम पाते थे। श्रीमहंत विष्णु दास एवं बाबा बलराम दास हठयोगी महाराज ने कहा कि जब समाज में चारों ओर आपसी कटुता और वैमनस्य का भाव भरा हुआ था। ऐसे समय में जगदगुरु स्वामी रामानंद ने भक्ति करने वालों के लिए नारा दिया जात पात ना पूछे कोई हरि को भजे सो हरि का होई। उन्होंने महिलाओं को भी भक्ति के वितान में समान अधिकार दिया। वैष्णव संप्रदाय उन्हीं के आदर्शो को अपनाकर समाज सेवा में अपना अतुल्य योगदान प्रदान कर रहा है और भारत सहित पूरे विश्व में सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का प्रचार प्रसार करने में वैष्णव संत अपना जीवन समर्पित कर रहे हैं। रामानंद आश्रम के महंत प्रेमदास एवं महामंडलेश्वर स्वामी राजेंद्रानंद महाराज ने कहा कि जगदगुरु स्वामी रामानंद ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए देश भर की यात्राएं की। पुरी और दक्षिण भारत के कई धर्म स्थानों पर जाकर राम भक्ति का प्रचार किया और राम भक्ति की पावन धारा को हिमालय की पावन ऊंचाइयों से उतारकर गरीबों और वंचितों की झोपड़ी तक पहुंचाया। वे भक्ति मार्ग के ऐसे सोपान थे। जिन्होंने भक्ति साधना को नया आयाम दिया। उनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षाएं आज भी लोगों के लिए प्रासंगिक हैं। संत समाज ऐसे महापुरुषों के जीवन का अनुसरण कर प्रभु भक्ति की आराधना में समर्पित है और गरीब असहाय निर्बल लोगों की सहायता के लिए सदैव तत्पर है। महंत प्रहलाद दास एवं महामण्डलेश्वर स्वामी कपिल मुनि महाराज ने कहा कि जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज का जीवन वैष्णव संत ही नहीं अपितु सर्व समाज के लिए एक आदर्श है। जिन्होंने मध्यकालीन युग में अभूतपूर्व सामाजिक क्रांति का श्रीगणेश कर बड़ी जीवटता से समाज और संस्कृति की रक्षा की। उन्हीं के चलते उत्तर भारत में तीर्थ क्षेत्रों की रक्षा और वहां सांस्कृतिक केंद्रों की स्थापना संभव हो सकी। राष्ट्र की एकता अखंडता बनाए रखने में उनका अतुल्य सहयोग भारत के इतिहास में हमेशा स्मरणीय रहेगा। इस अवसर पर पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी, महंत जसविन्दर सिंह, महंत देवानंद सरस्वती, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, महंत सुतीक्षण मुनि, महंत सूरज दास, महंत अरुण दास, महंत दुर्गादास, महंत प्रेमदास, महंत प्रमोद दास, महंत बिहारी शरण, महंत गोविंददास, महंत अंकित शरण, महंत राजेंद्र दास, स्वामी जगदीशानंद गिरी, स्वामी चिदविलासानंद, महंत शंभू दास, महंत नारायण दास पटवारी सहित बड़ी संख्या में संत महंत उपस्थित रहे।

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