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महामंडलेश्वर जय अंबानंद गिरी ने बतायी अपने वैराग्य जीवन से जुड़ी बात

श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा अंतरराष्ट्रीय संरक्षक व महामंत्री भारतीय अखाड़ा परिषद महंत हरी गिरी कि शिष्या अनंत महामंडलेश्वर अंबानंद गिरी ने बताया की संत और वैराग्य जीवन में रहना कितना सरल और कठिन होता है। उन्होंने कहा कि घर से जो संस्कार प्राप्त होते हैं व्यक्तित्व वैसा ही बनता है उनका कहना है की शुरू से ही उनके माता-पिता अध्यात्म की ओर ज्यादा रहे जिस प्रकार बचपन में एक बच्चे को कहानियां सुनाई जाती हैं उनको मंदिर व कीर्तन और इसी प्रकार की ओर सनातन धर्म के कार्य में रुझान रहा उनके जीवन का चरित्र भी वैसे ही बदल गया जिस प्रकार उनको अपने माता-पिता द्वारा सीख दी गई ! आजकल का आधुनिक समाज जोकि टीवी ,फोन, लैपटॉप आदि चीजों में रह गया उसको अपने सनातन धर्म के बारे में जानकारी अधिक नहीं है जिस कारण सनातन संस्कृति कहीं ना कहीं आज के युवा वर्ग में गुम होती दिखाई दे रही है ,परंतु हमारा यही प्रयास रहता है कि हम लोगों में युवाओं में अध्यात्म की रुची कायम रखें ! किसी के लिए भी संन्यास लेना इतना कठिन नहीं होता है जितना लोग समझते हैं मन साफ हो तो कुछ भी करना इतना कठिन नहीं है साथ ही यह भी कहा कि युवाओ में अध्यात्म और सनातन संस्कृति के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए जो आज की युवा वर्ग में कहीं ना कहीं गुम होती नजर आ रही है ! आजकल आधुनिक समाज जोकि काफी पिछड़ गया है संस्कारों से सनातन संस्कृति से सनातन धर्म से उसके लिए भी हमारे प्रयास जारी रहते हैं ! यह धरती सनातन धर्म की है जहां देश ही नहीं अपितु विदेश के लोग भी आ रहे हैं और उनका झुकाव सनातन संस्कृति की ओर हो रहा है यह कुंभ सिर्फ देश का नहीं पूरे विश्व का महापर्व है ,जिसको देखने के लिए साधु-संत व आम जनता का जन सैलाब उमड़ता है ! आने वाले आगामी स्नान पर्व की तैयारी भी जोरों पर हैं जिसमें कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए उसकी गाइडलाइन का भी पालन किया जाएगा और लोगों को व साधु समाज को इससे बचना भी है और महापर्व का हिस्सा भी बनना है ! महामंडलेश्वर अंबानन्द गिरि ने यह भी कहा कि कोविड के चलते लोगों को सतर्कता भी बरतनी चाहिए स्वस्थ रहें सुरक्षित रहें कुंभ भव्य और दिव्य होगा !

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