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नवरात्रों में देवी आराधना से प्राप्त होती है नई ऊर्जा-स्वामी कैलाशानंद गिरी


संत महापुरूषों के तप बल से भारत का विश्व में विशेष स्थान है-ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाहदेव

हरिद्वार, 13 अप्रैल। केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति एवं आनंद पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी बालकानंद गिरी महाराज ने चैत्र मास के प्रथम नवरात्र पर नीलधारा तट स्थित श्री दक्षिण काली मंदिर पहुंचकर निरंजन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज के सानिध्य में विधि विधान के साथ पूजा अर्चना की। इस दौरान आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि नवरात्रि में 9 दिनों तक मां के अलग-अलग स्वरूपों की आराधना करने से मां के आशीर्वाद स्वरुप हमें एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है। जिससे बुराईयों का परित्याग कर अच्छाई के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। नवरात्रों में विधि विधान से मां दुर्गा की पूजा अर्चना करने से प्रसन्न होकर मां भक्तों को सुख समृद्धि प्रदान कर उनका कल्याण करती है। उन्होंने कहा कि सिद्धपीठ श्री दक्षिण काली मंदिर में साक्षात रूप से विराजमान मां भगवती की आराधना करने से सहस्त्र गुणा पुण्य फल की प्राप्ति होती है। उन्होंने कहा कि देवी भगवती की कृपा पूरे विश्व को कोरोना महामारी से निजात मिलेगी। आनंद पीठाधीश्वर आचार्य स्वामी बालकानंद गिरी महाराज ने कहा कि मां आदिशक्ति की शक्ति किसी एक स्वरूप में नहीं बल्कि साधक की भक्ति में ही निहित है। देवी भगवती की महिमा संपूर्ण संसार में अपरंपार है। मां भगवती अपने साधकों के संरक्षक के रूप में प्रत्येक विपत्ति से उनकी रक्षा करती है। मां की शरण में आने वाले श्रद्धालु भक्त स्वयं ही उनकी कृपा के पात्र बन जाते हैं और उनका जीवन भवसागर से पार हो जाता है। केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति महाराज ने कहा कि पतित पावनी मां गंगा का तट और मां काली का सानिध्य कृपा पात्र शिष्यों को ही प्राप्त होता है। मां भगवती के आशीर्वाद मात्र से ही भक्तों का जीवन कृतार्थ हो जाता है। उन्होंने कहा कि सभी को नवरात्र व्रत व आराधना करने के साथ देवी स्वरूपा कन्याओं के संरक्षण व संवर्द्धन का संकल्प भी अवश्य लेना चाहिए। तभी नवरात्र व्रत की सार्थकता है। पूर्व नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र वीर विक्रम शाहदेव ने कहा कि संत महापुरूषों के तप बल से भारत का विश्व में विशेष स्थान है। आचार्य मनीष जोशी, आचार्य पवनदत्त मिश्र, स्वामी अनुरागी महाराज, स्वामी अवंतकानंद ब्रह्मचारी, स्वामी कृष्णानंद ब्रह्मचारी, स्वामी मुकुन्दानंद ब्रह्मचारी, महंत नत्थीनंद गिरी, महंत मोनू गिरी आदि मौजूद रहे।

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