विक्की सैनी
हरिद्वार, 15 नवंबर। संतों का जीवन सदैव परोपकार को समर्पित होता और शिव स्वरूप संत ही अपने भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उक्त उद्गार भूपतवाला स्थित योगानंद योग आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी सत्यव्रतानंद महाराज ने ब्रह्मलीन योगीराज स्वामी योगानंद सरस्वती महाराज को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए व्यक्त किए। स्वामी सत्यव्रतानन्द महाराज ने कहा कि संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है। ब्रह्मलीन स्वामी योगानंद सरस्वती महाराज तो साक्षात त्याग एवं तपस्या की प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने सदैव अपने जीवनकाल में भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म की पताका को भारत ही नहीं देश विदेश में भी फैलाया। धर्म के उत्थान व संरक्षण में उनके अहम योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। महामनीषी स्वामी निरंजन महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी योगानंद सरस्वती एक महान संत थे। जिन्होंने सदैव भावी पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर राष्ट्र कल्याण के लिए प्रेरित किया और गंगा तट से अनेकों सेवा प्रकल्प चलाकर सदैव गरीब असहाय लोगों की सहायता की। ऐसे महापुरूषों को संत समाज सदैव नमन करता है। म.म.स्वामी प्रबोधानंद गिरी महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी योगानंद सरस्वती महाराज एक तपस्वी संत थे। जिन्होंने अपने तप व विद्वता के माध्यम से धर्म के नए आयाम स्थापित किए और सदैव समाज का मार्गदर्शन कर एक नई दिशा प्रदान की। श्रीमहंत साधनानंद महाराज ने कहा कि संतों का जीवन मानवता की रक्षा को समर्पित रहता है। ब्रह्मलीन स्वामी योगानंद सरस्वती महाराज ने सदैव लोगों को गोसेवा व गंगा सेवा का संकल्प दिलाया। उन्ही के बताए मार्ग का अनुसरण कर उनके कृपापात्र शिष्य स्वामी सत्यव्रतानन्द महाराज उनके अधूरे कार्यो को पूर्ण कर रहे हैं। इस दौरान स्वामी विवेकानंद सरस्वती, म.म.स्वामी प्रेमानंद, महंत रूपेंद्र प्रकाश, स्वामी ललितानंद गिरी, स्वामी जगदीशानंद, स्वामी चिदविलासानंद, महंत दुर्गादास, महंत सूरजदास व मनोज गिरी आदि उपस्थित रहे।