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प्रेम एवं करूणा की प्रतिमूर्ति थे ब्रह्मलीन महंत दर्शन सिंह-श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह

हरिद्वार, 5 फरवरी। निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा है कि संतों का जीवन निर्मल जल के समान होता है और जिस जगह संत समागम का आयोजन हो जाता है। वह सदैव के लिए पूजनीय हो जाती है। देवपुरा आश्रम में ब्रह्मलीन महंत दर्शन दास महाराज की दूसरी पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन महंत दर्शन सिंह महाराज प्रेम एवं करुणा की साक्षात प्रतिमूर्ति थे। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन मानव सेवा के लिए समर्पित किया। राष्ट्र कल्याण में उनका अहम योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविंदर सिंह महाराज एवं महंत प्यारा सिंह महाराज ने कहा कि संतो के दर्शन मात्र से पापों से निवृत्ति और पुण्य की प्राप्ति होती है। ब्रह्मलीन महंत दर्शन सिंह महाराज एक महान संत थे। जिन्होंने जीवन पर्यंत भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के लिए भारत भर में भ्रमण कर प्रचार प्रसार किया। युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाकर धर्म की रक्षा के लिए प्रेरित किया। ऐसे महापुरुषों को संत समाज सदैव स्मरण करता रहेगा। युवा भारत साधु समाज के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी रवि देव शास्त्री एवं बाबा हठयोगी महाराज ने कहा कि महापुरुषों के जीवन से प्रेरणा लेकर सभी को समाज कल्याण के लिए तत्पर रहना चाहिए। संतों का जीवन सदैव ही परमार्थ के लिए समर्पित रहता है और ब्रह्मलीन महंत दर्शन सिंह महाराज साक्षात त्याग एवं तपस्या को समर्पित रहने वाले संतत्व के धनी थे। समाज को उनके द्वारा प्रदान की गई शिक्षाएं अनंत काल तक मार्गदर्शन करती रहेंगी। देवपुरा आश्रम के महंत गुरमीत सिंह महाराज ने कार्यक्रम में पधारे सभी संत महापुरुषों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पूज्य गुरुदेव के अधूरे कार्यों को पूरा करते हुए संतों की सेवा करना ही उनके जीवन का मूल उद्देश्य है और गंगा तट से उनके गुरु द्वारा जो सेवा प्रकल्प प्रारंभ किए गए थे। उनमें निरंतर बढ़ोतरी कर मानव सेवा के लिए समर्पित रहना ही उनके गुरु को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। इस अवसर पर महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद गिरी, महंत जमुना दास, महंत सूरज दास, महंत अरुण दास, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, स्वामी राम जी, स्वामी केशवानंद, महंत निर्मल दास, महंत भूपेंद्र सिंह, महंत रुघुवीर सिंह, महंत शिवानन्द, स्वामी राजेंद्रानन्द, स्वामी कपिलमुनि, स्वामी रामेश्वरानन्द, महंत प्र्रेमदास, महंत मोहन सिंह, महंत तीरथ सिंह, महंत निर्भय सिंह, महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद, महंत रघुवीर दास, महंत नित्यसुधानंद, महंत श्याम प्रकाश, स्वामी जगदीशानंद गिरी, स्वामी चिदविलासानंद सहित बड़ी संख्या में संत महंत उपस्थित रहे।

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