विक्की सैनी
हरिद्वार, 5 जुलाई। चेतन ज्योति आश्रम के परमाध्यक्ष स्वामी ऋषिश्वरानन्द महाराज ने कहा कि धरती पर जीवन की उत्पत्ति से ही गुरू का विशेष स्थान रहा है। गुरू शिष्य के जीवन की सारी निराशाओं को नष्ट कर समृद्धि व वैभव प्रदान करते हैं। गुरूपूर्णिमा पर्व हमें स्मरण कराता है कि जीवन में जो अन्धकार है। उस अन्धकार के मध्य गुरू रूपी ज्योति भी है। उससे अपने जीवन को प्रकाशित कर परमार्थ की ओर बढ़ते रहे। गुरूपूर्णिमा के अवसर पर शिष्यों को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि गुरू शिष्य के लिए मनुष्य रूप में नारायण के समान हैं। गुरू के चरण कमलों की वन्दना करने से जीवन में छाया अंधकार नष्ट हो जाता है। गुरू के आशीर्वाद से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। केवल गुरूपूर्णिमा के अवसर पर ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षण में गुरू के प्रति कृतज्ञ रहना ही सच्ची गुरू पूजा है।
श्री थानाराम आश्रम के परमाध्यक्ष पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि गुरू ही व्यक्ति का सच्चा मार्गदर्शक है। जो शिष्य का परमात्मा से साक्षात्मकार करवाकर उसके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता है। उन्होंने कहा कि गुरू बिना ज्ञान की प्राप्ति असंभव है। व्यक्ति चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो। उसे गुरू की आवश्यकता पड़ती है। उन्होंने कहा कि गुरू परमात्मा का स्वरूप है।
निरालाधाम की परमाध्यक्ष राजामाता आशा भारती ने कहा कि गुरू शिष्य परम्परा से ही सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति की पहचान है। गुरू ही शिष्य का मार्गदर्शन करने के साथ संपूर्ण जीवन संरक्षक के रूप में भी कार्य करता है। जो व्यक्ति गुरू की शरण में श्रद्धाभाव से सेवा करते हैं। उन्हें अवश्य ही सफलता प्राप्त होती है। क्योंकि गुरू के माध्यम से ही व्यक्ति परमात्मा की शरण में पहुंचता है।
जगन्नाथ धाम के परमाध्यक्ष महंत अरूण दास महाराज ने गुरू पर्व का महत्व बताते हुए कहा कि गुरू ही ज्ञान का भण्डार है। गुरू के सानिध्य में प्राप्त ज्ञान से ही व्यक्ति भवसागर से पार हो जाता है। ब्रह्मलीन स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज का स्मरण पूजन करते हुए उन्होंने कहा कि ब्रह्मलीन स्वामी हंसदेवाचार्य महाराज ने गुरू के रूप में हमेशा शिष्यों को ज्ञान की प्रेरणा देकर सनातन धर्म व भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए प्रेरित किया। महंत लोकेश दास महाराज ने कहा कि भारतीय संस्कृति में गुरू को हमेशा ऊंचा स्थान दिया गया है। अनादि काल से चली आ रही गुरू शिष्य परम्परा भारतीय संस्कृति जीवित है। हमें गुरू के बताए मार्ग पर चलकर राष्ट्र कल्याण में योगदान देना चाहिए।