हरिद्वार, 27 अक्तूबर। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के कोठारी व अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के कोषाध्यक्ष महंत जसविन्दर सिंह महाराज ने कहा कि जो लोग श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष व श्रीमहंत राजेंद्र दास महाराज को महामंत्री नहीं मान रहे हैं। उन्हें पहले अपने गिरेबान में झांकना चाहिए। सन्यासी, उदासी, निर्मल व बैरागी चारों संप्रदायो को साथ मिलाकर ही अखाड़ा परिषद पूर्ण होती है। चारों संप्रदाय व सात अखाड़ों ने मिलकर महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव श्रीमहंत रविन्द्रपुरी महाराज को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष तथा श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़े के अध्यक्ष श्रीमहंत राजेंद्रदास महाराज को महामंत्री चुना है। वर्षो से अखाड़ा परिषद पर कब्जा जमाए बैठे कुछ संत पदों की लालसा में पूर्ण बहुमत से चुनी गयी अखाड़ा परिषद कार्यकारिणी का विरोध करने के लिए अनर्गल प्रचार कर रहे हैं। महंत जसविन्दर सिंह महाराज ने कहा कि कुछ संतों का यह कहना कि अखाड़ा परिषद केवल दशनाम सन्यासियों का संगठन है। उन्हें अपने कथन पर पुनर्विचार करना चाहिए। वर्षो से चली आ परंपरा के तहत सभी 13 अखाड़ों को मिलाकर ही अखाड़ा परिषद का गठन होता रहा है। जिसमें बैेरागी अखाड़े हमेशा ही अखाड़ा परिषद का घटक रहे हैं। बैरागी संप्रदाय के वरिष्ठ संत श्रीमहंत ज्ञानदास महाराज ने लंबे समय तक अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में परिषद का नेतृत्व किया। उनके नेतृत्व में सभी अखाड़ों ने एकजुट होकर धर्म संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य किया। बैरागी अखाड़ों को लेकर कोई भी वक्तव्य जारी करने से पहले संतों को इस तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि प्रयागराज में जिस प्रकार फर्जी व अखाडे़े से निष्कासित संतों को शामिल कर अखाड़ा परिषद अध्यक्ष का चुनाव किया गया। उससे संत परंपरा को आघात पहुंचा है।
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