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भूमा पीठीधीश्वर स्वामी अच्युतानन्द तीर्थ ने की स्वामी रामदेव के बयान की निंदा

हरिद्वार, 29 मई। भूमा पीठाधीश्वर स्वामी अच्युतानन्द तीर्थ महाराज ने स्वामी रामदेव के बयान कि ‘जिन माता-पिता, अभिभावकों के बच्चे बीमार होते है, उन माता-पिता व अभिभावकों को दण्डित करना चाहिए’ की कड़ी निन्दा की है। स्वामी अच्यूतानन्द तीर्थ महाराज ने कहा कि स्वामी रामदेव का यह बयान बहुत ही निन्दनीय है। स्वामी रामदेव को बताना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति के माता पिता इस दुनिया में नही है और वह व्यक्ति बीमार हो जाता है तो उसकी सजा किसी दी जायेगी। शास्त्रों के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को जो भी सुख-दुख प्राप्त होता है। वह उसके अच्छे-बुरे कर्मो का फल ही होता है। इसमें किसी के माता पिता, भाई बहन या किसी अन्य व्यक्ति का दोष नही होता। अपने कर्मो की सजा तो स्वयं ही भुगतनी पड़ती है। भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत् गीता यह स्पष्ट कहा है। स्वामी अच्यूतानन्द तीर्थ महाराज ने कहा कि यदि बाबा रामदेव का बयान सही है तो सबसे पहले वे अपने माता पिता को दण्डित करें। क्योंकि बचपन में वे भी बीमार हुए थे। उन्होंने कहा कि बाबा रामदेव के लिए बीमारियाँ तो वरदान है। यदि बीमारियाँ नही होती। तो न ही बाबा रामदेव का योग बिकता और न ही उनकी दवाँईया बिकती। जहां तक योग की बात है। योग केवल पेट घुमाना और हाथ-पैर घुमाना ही नही है। स्वामी रामदेव पहले भारतीयों के जीन्स पहनने पर बुराई करते थे कि जीन्स का पहनावा विदेशी है। अब वे कहते है कि जीन्स पहनना संस्कारी है और स्वदेशी है। ऋषि परम्पराओं के अनुसार साधु-सन्यासी के प्रति समाज में जो सम्मान व आस्था होती है। उसी सम्मान व आस्था का दोहन कर बाबा रामदेव अपना व्यापारिक साम्राज्य स्थापित कर रहे हैं। स्वामी रामदेव को संत समाज के प्रति कोई लगाव नहीं है। वे केवल अपने व्यापार को बढ़ावा दे रहे हैं। स्वामी रामदेव को लिखित अथवा समाचार पत्रों के माध्यम से योग, हठ योग, कपाल भाति एवं नाड़ी योग की परिभाषा में अन्तर स्पष्ट करना चाहिए। क्योंकि केवल बाहृय शरीर द्वारा एक्सरसाईज करने से योग की परिभाषा सिद्ध नही होती। जबकि पतंजलि के सिद्धान्त आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के सिद्धान्त एवं भागवत गीता के सिद्धान्त से भिन्न है।क्योंकि इनके अनुसार योग, बाहृय शरीर से नही होता है। इसका शाब्दिक अर्थ मनुष्य के श्वास, मन व बुद्धि से योग करना होता है, न कि किसी बाह्य शरीर से।

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