विक्की सैनी
हरिद्वार, 18 अगस्त। भारतीय चिकित्सा परिषद उत्तराखंड के बोर्ड सदस्य डा.महेंद्र राणा ने उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि जड़ी-बूटी निर्यात क्षेत्र (एचईजेड) और जड़ी-बूटियों की खेती के लिहाज से उत्तराखंड एक प्रमुख केंद्र बन सकता है और यह राज्य भारत के हर्बल उद्योग को गति देने में अहम भूमिका निभा सकता है। डा. राणा ने कहा कि राज्य में जड़ी-बूटी निर्यात क्षेत्र और जड़ी-बूटियों की खेती को बढ़ावा देने से राज्य के लाखों लोगों को रोजगार मिल सकेगा। डा. राणा ने राज्य सरकार से मांग की है कि हर्बल इकोनोमिक जोन (एचईजेड ) और हर्बल खेती के लिए बनाए जाने वाले विशेष क्षेत्रों को टैक्स छूट, आसान कर्ज, सस्ती दर पर जमीन, पानी और बिजली जैसी सुविधाएं दी जाएं। राज्य सरकार को यह सुझाव भी दिया गया है कि गोपेश्वर के जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान की तरह उत्तराखंड में दो-तीन और जड़ी-बूटी शोध एवं विकास संस्थान स्थापित किए जाने बेहद जरूरी हैं। ऐसे संस्थान शुरू करने का दोहरा फायदा है। इन संस्थानों से किसानों को तो लाभ मिलना तय है। इसके अलावा छात्रों के अध्ययन के लिहाज से भी यह एक नया क्षेत्र होगा और वे इस क्षेत्र की संभावनाओं को भी टटोल सकेंगे। उत्तराखंड में ऐसे पौधे पाए जाते हैं। जिनका किसी न किसी रूप में दवाई बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। राज्य में पैदा होने वाले कई तरह के फलों को देखते हुए यहां बागवानी की भी अच्छी संभावना है। डा. राणा के मुताबिक जड़ी-बूटियों से बनी दवाओं की मांग दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। इन दवाओं का उत्पादन कई गुना बढ़ने की संभावना है। दवा बनाने में इस्तेमाल होने वाले पौधों के उत्पादन में बढ़ोतरी के मकसद से राज्य सरकार को किसानों के बीच प्रशिक्षण शिविर आयोजित करना चाहिए। यदि सरकार इस क्षेत्र में गम्भीरता से ध्यान देती है तो वर्तमान कोरोना संक्रमण की वजह से उत्तराखंड वापस लौटे प्रवासी युवाओं के लिए भी जड़ी बूटी उत्पादन एवं निर्यात रोजगार का एक मजबूत विकल्प साबित हो सकता है।