Health

भारत में भी सीवेज में पाया गया कोरोना वायरस

हिमांशु भट्ट
नया साल (2020) शुरू होते ही कोरोना वायरस ने चीन में दस्तक दे दी थी। चीन से वायरस धीरे धीरे पूरी दुनिया में फैला। अमेरिका, ब्राजील, रूस, ब्रिटेन, स्पेन, पेरू सहित दुनिया के तमाम देशों में वायरस ने कहर बरपाया। अभी तक 1 करोड़ 43 लाख से ज्यादा लोग दुनियाभर में कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। सबसे ज्यादा 1 लाख 28 हजार से ज्यादा मौते अमेरिका में हुई हैं। तो वहीं संक्रमितों की संख्या अभी भी तेजी से बढ़ती जा रही है। भारत इससे अछूता नहीं है। भारत में जनवरी के अंत में कोरोना का पहला मामला सामने आया था। देश में शुरूआत में कोरोना संक्रमत के फैलने की गति काफी कम रही, लेकिन अब कोरोना काफी तेजी से फैला है और अब तक भारत में संक्रमितों की संख्या 5 लाख 66 हजार को पार कर चुकी है, जबकि 16 हजार से ज्यादा लोगों की देश में मौत हो चुकी है। वायरस को लेकर कई शोध हुए। जिनमें बताया गया कि वायरस किस प्रकार फैल सकता है और कहां-कहां पाए जाने की संभावना है। इसी बीच एक शोध हुआ, जिसमें मानव मल में कोरोना के पाए जाने की बात सामने आई। नीदरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और अमेरिका ने गंदे पानी में सार्स-कोव-2 वायरस गंदे पानी में पाया भी गया था।


26 मार्च 2020 की अमर उजाला की खबर के मुताबिक आयुर्विज्ञान की जानी मानी पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित इस अध्ययन में ‘फीकल-ओरल’ (मल-मुख) माध्यम को कोरोना संक्रमण का वाहक करार दिया है। यानी किसी संक्रमित व्यक्ति के खुले में शौच करने के बाद उसके संपर्क में आने वाले कीट, मक्खी, खाद्य पदार्थों और फल-सब्जियों पर बैठ सकते हैं। फिर इन खाद्य पदार्थों को जो व्यक्ति ग्रहण करेगा, उनमें भी कोरोना पहुंच सकता है। मल-मुख के रास्ते कोरोना संक्रमण फैलने की ज्यादा आशंका उन गरीब विकासशील देशों में ज्यादा है, जहां स्वच्छता और खुले में शौच का चलन है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, वैसे तो ड्राॅपलेट कोरोना के संक्रमण की सबसे बड़ी वाहक है, लेकिन मानव मल में हफ्तों तक यह वायरस जिंदा रह सकता है। इसके संपर्क में आए पदार्थ और दूषित पर्यावरण के जरिए कोरोना के नाक, मुंह तक पहुंचने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मार्च में ही महानायक अमिताभ बच्चन ने लैंसेट पत्रिका में छपे अध्ययन का हवाला देते हुए वीडियो जारी किया था, जिसमें उन्होंने मानव मल में कोरोना का वायरस पाए जाने की बात कही थी। वीडियो को उन्होंने ट्वीटर पर शेयर भी किया। जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रीट्वीट भी किया। लेकिन स्वास्थ मंत्रालय ने इस प्रकार से कोरोना फैलने की बात से इनकार कर दिया। अभी भी दुनिया भर में इस शोध की चर्चा हो रही है और बीजिंग तथा अमेरिका में कोरोना के संक्रमित मरीज के मल में कोरोना वायरस पाया गया है। 


9 जून को अमर उजाला की एक खबर में बताया गया था कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान गांधीनगर के शोधकर्ताओं ने पाया है कि सीवेज के गंदे पानी में भी कोरोना के गैर संक्रमित जीन पाए जा रहे हैं। इस बात का पता लगाने के लिए गंदे पानी का विश्लेषण करने की जरूरत थी। विश्लेषण के लिए गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आईआईटी गांधीनगर को 8 मई से 27 मई तक गंदे पानी के सैंपल इकट्ठे करने में मदद की। सैंपल में से जेनेटिक मैटेरियल आरटीपीसीआर को अलग करने के लिए हर 100 मिलीलीटर गंदे पानी के सैंपल को कई समय तक केंद्रित किया गया। जिसके बाद पता चला कि सभी सैंपल में कोरोना वायरस के तीन जीन मिले, जिसमें ओआरएफ1एबी, एस और एन जीन शामिल हैं। हालांकि शोध में पाया गया कि पानी के तापमान का असर वायरस के जीवन पर पड़ता है, जिस कारण गंदे पानी में कोरोना वायरस संक्रमण नहीं फैलाता है।
अब भारत में ही हुआ एक और शोध सामने आया है। डाउन टू अर्थ के मुताबिक जयपुर के केबी लाल इंस्टीट्यूट आफ बायोटेक्नोलाजी के वैज्ञानिकों के एक समूह ने हाल ही में एक अध्ययन किया है। अध्ययन में नगरपालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और अस्पताल के अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 वायरल जीन की उपस्थिति पाई गई है। अध्ययन 18 जून को मेड्रिक्सिव जर्नल में प्रकाशित हुआ है। इसके लिए जयपुर के आसपास कोरोना वायरस का उपचार कर रहे दो प्रमुख हाॅस्पिटलों के सीवेज के नमूने लिए गए। अध्ययन में बताया गया कि नगरपालिका के वेस्ट वाॅटर ट्रीटमेंट प्लांट से लिए गए सैंपलों में से दो सैंपल पाजिटिव मिले हैं। इसके बाद अखबार में प्रकाशित कोरोना की खबरों और अध्ययन में पाॅजिटिव पाए गए नमूनों के बीच संबंध का पता लगाने का कार्य करना था।


दोनों के बीच जब संबंध पता लगाए तो चैंकाने वाला परिणाम सामने आया। अध्ययन के लिए पहले नमूने के तुरंत बाद नगर पालिका के वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के आसपास कोरोना संक्रमितों की संख्या में लगातार वृद्धि होती पाई गई। यहां एक बात और गौर करने वाली है कि इस ट्रीटेड पानी का उपयोग खेतों में सिंचाई के लिए किया जाता है। इसलिए खेतों में सिंचाई के लिए दिए जाने वाले पानी का भी परीक्षण किया। ट्रीटेड वाटर में वायरल के जीनोम नहीं आए गए। अध्ययन करने वाले  समूह का दावा है कि यह पहला अध्ययन है जो भारत में सीवेज नमूनों से सार्स- सीओवी-2 (SARS-Cov-2) की उपस्थिति की पुष्टि करता है और एक चेतावनी देने का आधार देता है जहाँ व्यक्ति-परीक्षण उपलब्ध नहीं हो सकता है।

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