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राष्ट्रीय एकता अखंडता बनाए रखने में संतों का अतुल्य योगदान – श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह


हरिद्वार, 7 सितंबर। श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा है कि संत परंपरा सनातन संस्कृति की वाहक है। और हरिद्वार के संतों ने भारत का जो स्वरूप विश्व पटल पर प्रस्तुत किया है वह अद्भुत व अनुकरणीय है। भूपतवाला स्थित नानकपुरा आश्रम में ब्रह्मलीन संत गोपाल दास महाराज की पुण्य तिथि के अवसर पर उपस्थित श्रद्धालु संगत को संबोधित करते हुए श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह महाराज ने कहा कि ब्रह्मलीन संत जयमल सिंह भूरी वाले, संत गोपाल दास महाराज एवं बाबा गुरबचन सिंह भूरी वाले महाराज ने निर्मल संप्रदाय की परंपराओं का भली-भांति पालन करते हुए राष्ट्र निर्माण में अपना अतुल्य योगदान प्रदान किया। भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म के प्रति युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाया। जो कि समस्त संत समाज के लिए गौरव की बात है। राष्ट्रीय एकता अखंडता बनाए रखने में उनका अतुल्य योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद एवं निर्मल अखाड़े के कोठारी महंत जसविंदर सिंह महाराज ने कहा कि संतों का जीवन सदैव ही परोपकार को समर्पित रहता है। और संत सदैव ही अपने भक्तों को ज्ञान की प्रेरणा देकर उनके कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। ब्रह्मलीन संत गोपाल दास महाराज एक महान संत थे जिन्होंने अनेकों सेवा प्रकल्पों के माध्यम से समाज को सेवा का संदेश दिया। उनके बताए मार्ग पर चलकर महंत सुखबीर कौर, बीबी जसवीर कौर, बीवी राजवेंद्र कौर महाराज सनातन परंपराओं का निर्वहन करते हुए संत समाज की सेवा कर रही हैं। और उनके अधूरे कार्यों को पूर्ण कर रही हैं। महंत प्यारा सिंह महाराज ने कहा कि संतों का संपूर्ण जीवन निर्मल जल के समान होता है। त्याग एवं तपस्या की प्रतिमूर्ति संत महापुरुष संत गोपाल दास महाराज एक दिव्य महापुरुष थे। ऐसे महापुरुषों को संत समाज सदैव नमन करता है। कार्यक्रम में पधारे सभी संत महापुरुषों का महंत सुखबीर कौर, बीबी जसवीर कौर, बीवी राजवेंद्र कौर महाराज ने स्वागत करते हुए कहा कि धर्म के प्रति समर्पण और भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था ही उनका परम कर्तव्य है। ब्रह्मलीन गुरुओं के अधूरे कार्य को पूर्ण करना और समाज सेवा करते हुए निरंतर धर्म का संरक्षण संवर्धन करना उनके जीवन का मूल उद्देश्य रहेगा। उन्होंने कहा कि पूज्य गुरुदेव संत गोपाल दास महाराज, संत जयमल सिंह भूरीवाले एवं बाबा गुरबचन सिंह भूरीवाले ने पूरा जीवन विरक्त रूप से व्यतीत किया और नानकपुरा आश्रम के माध्यम से समाज को जनकल्याण व धर्म चेतना के प्रति सजग किया धर्म के प्रति उनका समर्पण सभी समाज को सदैव अविस्मरणीय रहेगा। इस दौरान गुरविंदर सिंह, अमरजीत सिंह, बाबा गुरमीत सिंह, महंत देवानंद सरस्वती, महामंडलेश्वर स्वामी ललितानंद गिरि ,महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि, स्वामी रामजी महाराज, महंत गोविंद दास, महंत रघुवीर दास, श्रीमहंत विष्णु दास, महंत ज्ञानानंद शास्त्री, पूर्व पालिका अध्यक्ष सतपाल ब्रह्मचारी, पार्षद अनिरुद्ध भाटी, महंत रंजय सिंह, महंत श्याम प्रकाश, स्वामी रविदेव शास्त्री, स्वामी हरिहरानंद, स्वामी दिनेश दास, स्वामी केशवानंद, पार्षद अनिल मिश्रा, शिवदास, डॉक्टर हर्षवर्धन जैन, राकेश मिश्रा, सुनील तिवारी, ओमकार पांडे , शैलेंद्र मिश्रा, सुनील मिश्रा, दिवाकर तिवारी, गोपाल पुनेठा आदि सहित बड़ी संख्या में संत महंत उपस्थित रहे।

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